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ओलिंपिक में पहली बार महिलाएं पुरुषों के बराबर; उच्च शिक्षा में आगे निकलीं

नई दिल्ली
समाज में बराबरी के लिए महिलाओं के संघर्षों का पहला बड़ा नतीजा 100 साल पहले 1920 में निकला था। तब अमेरिका में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला था। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2020 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, जेंडर गैप भरने में 99.5 साल लगेंगे। 2018 में कहा गया था कि 108 साल लगेंगे। यानी दो साल में महिलाओं की स्थिति इतनी सुधरी है कि जेंडर गैप खत्म होने की अवधि एक साल में 8.5 साल कम हो गई है। यही रफ्तार बरकरार रही, तो अगले 12 साल में जेंडर गैप खत्म हो जाएगा। इकोनॉमिक फोरम 2007 से यह गणना कर रहा है। तब उसका आकलन 257 साल का था। यानी महिलाओं ने 13 साल में 157.5 साल कम कर दिए हैं।
दुनियाभर में समान काम के बदले महिलाओं को औसतन 21% कम वेतन मिल रहा है। इन सब बाधाओं के बीच महिलाओं ने कई क्षेत्रों में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है या बराबरी के करीब बढ़ रही हैं। आज महिलाओं की इन्हीं उपलब्धियों पर पढ़िए भास्कर रिपोर्ट...

मैराथन: महिलाओं ने तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व

  • 2019 में 191 देशों में 79 लाख रनर ने हिस्सा लिया। इसमें 50.24% महिलाएं रहीं। स्पीड के मामले में महिलाएं पुरुषों से औसतन 38 मिनट पीछे हैं।
  • 1986 से अब तक महिलाओं की हिस्सेदारी 20% बढ़ी है। रेस में हिस्सा लेने वाली महिलाओं की औसत उम्र 36 और पुरुषों की 40 साल है।

ओलिंपिकः कमेटी में पहली बार महिलाओं की हिस्सेदारी 33%, 5 साल में 100% बढ़ीं
24 जुलाई से होने जा रहे टोक्यो ओलिंपिक से अच्छी खबर है। पहली बार ओलिंपिक कमेटी में 33% महिलाएं हैं। 5 साल में यह 100% बढ़ोतरी है। यह गैप भरने में 120 साल लग गए। 1900 में पहली बार महिलाओं को ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने का मौका मिला था। तब महज 2.2% महिलाओं ने हिस्सा लिया था। 2016 के रियो ओलंपिक में कुल खिलाड़ियों में 45% महिलाएं थीं। टोक्यो में 2020 में 48.8% महिला खिलाड़ी हिस्सा ले रही हैं।

शिक्षाः देश में पहली बार लड़कियां हायर एजुकेशन में लड़कों की बराबरी पर पहुंची
उच्च शिक्षा में लड़कियां, लड़कों के बराबर आ गई हैं। 2018-19 में करीब 3.74 करोड़ स्टूडेंट उच्च शिक्षा में थे। इसमें 1.92 करोड़ पुरुष और 1.82 करोड़ महिलाएं हैं। यानी उच्च शिक्षा में 48.6% लड़कियां।

दुनिया मेंः स्कूलों में लड़कियां, लड़कों जितना वक्त बिता रही हैं। 1970 में लड़के, लड़कियों से औसतन 2 साल अधिक समय स्कूलों में बिताते थे। अब यह अंतर महज ढाई घंटे या 144 मिनट का रह गया है।

वोटिंगः भारत में महिलाओं ने बराबरी की और अमेरिका में महिलाएं 20 साल से आगे
अमेरिका में 1998 से अबतक हुए चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले हैं। भारत में भी महिला वोटिंग पुरुषों जितनी पहुंच गई है।
दुनिया में 35,127 संसदीय सीटें हैं। इनमें 25% सीटें महिलाओं के पास हैं। वहीं 21% महिलाएं मंत्रिमंडल में हैं। 68 देशों में महिलाएं सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं।

कॉरपोरेटः पहली बार सीनियर पदों पर 29% महिलाएं, देश में यह संख्या 20% है
एनएसई में लिस्टेड 69 कंपनियों के बोर्ड में महिला एक्जीक्यूटिव हैं। 5 साल में महिला डायरेक्टर्स 50% बढ़ी हैं। सीनियर पदों पर 29% महिलाएं हैं। 2 साल पहले 7% थी। वर्कफोर्स में 22% हैं।
दुनियाभर के 87% बिजनेस में कम से कम एक महिला सीनियर मैनेजमेंट में है।

क्या आप जानते हैं?

सिर्फ 8 देशों में समान मौके, वेतन भी 23% कम, 312 मिनट अनपेड

  • सिर्फ 8 देश ही ऐसे हैं, जहां महिला-पुरुषों को समान मौके उपलब्ध हैं। ये देश हैं-बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, लातविया, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा।
  • अफ्रीकी महिलाएं सबसे कामकाजी: सब सहारा अफ्रीका में 64% महिलाएं कामकाजी हैं। मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका में 75% पुरुषों के मुकाबले केवल 22% महिलाएं कामकाजी हैं।
  • समान काम, वेतन 23% कम: वैश्विक स्तर पर महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों से 23% कम है। दक्षिण एशिया में यह अंतर 33% है तो मिडिल ईस्ट में 14% है। इस गति से महिला-पुरुष की आय बराबर होने में 70 साल लग जाएंगे।
  • देश में महिलाएं जीडीपी का 3.1% अनपेड काम करती हैं। शहरों में एक महिला 312 और गांव में 291 मिनट अनपेड वर्क करती हैं। जबकि पुरुष क्रमशः 29 और 32 मिनट अनपेड वर्क करते हैं।

और सबसे शर्मनाक: आम चुनाव में महिला नेताओं ने रोज गालियां सुनीं
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में एक शोध में पाया कि आम चुनाव के दौरान महिला नेताओं को हर रोज सोशल मीडिया पर हत्या और बलात्कार जैसी धमकियां मिलीं। मार्च से मई के बीच 10 लाख से ज्यादा नफरत भरे ट्वीट किए गए।

स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी पहली महिला क्रांति को समर्पित, फ्रांस ने अमेरिका को गिफ्ट दिया था

1789 की फ्रांस की क्रांति में महिलाओं ने समानता के लिए पहला आंदोलन किया। महिलाओं ने 60 क्लब बनाए, जिसमें द सोसाइटी ऑफ रिवॉल्यूशनरी एंड रिपब्लिकन वुमन क्लब काफी चर्चित था। महिलाओं ने शिक्षा, पति चुनने, वोटिंग और असेंबली में चुनाव का हक मांगा था। नई सरकार ने उनकी मांगें मानी और विवाह को सिविल कानून के तहत मान्यता दी। स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी इसी महिला क्रांति को समर्पित है, जिसे 1886 में फ्रांस ने अमेरिका को उपहार में दिया था।

1848 में न्यूयॉर्क में वोटिंग के हक के लिए आंदोलन किया, 72 साल संघर्ष के बाद मिला

1848 में न्यूयॉर्क में महिलाओं ने वोटिंग के हक के लिए आंदोलन शुरू किया। 1908 में न्यूयॉर्क में ही 15 हजार महिलाओं ने मार्च निकाला। 1909 में पहली बार महिला दिवस मनाया गया। 1920 में अमेरिका ने महिलाओं को वोटिंग अधिकार दे दिया। 1975 में यूएन ने महिला दिवस को मान्यता दी और 1977 में यूएन जनरल असेंबली ने तय किया कि 8 मार्च महिला अधिकारों के लिए समर्पित होगा। आज 15 देशों में 8 मार्च को अवकाश होता है।

कभी हिंसक आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया, परमाणु हमले के खिलाफ पहली हड़ताल की

महिलाओं ने कभी हिंसक आंदोलन नहीं किया। परमाणु बम के खिलाफ भी पहली आवाज इन्होंने ही उठाई। 1961 में न्यूक्लियर टेस्ट के खिलाफ अमेरिका के 60 शहरों में 50 हजार महिलाओं ने हड़ताल की थी। इसके अलावा सामाजिक मुद्दों के प्रति भी महिलाएं ज्यादा संवेदनशील रही हैं। क्लाइमेंट चेंज दुनिया के सामने आज सबसे बड़ा मुद्दा है। पर्यावरण की बेहतरी के लिए काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग और रीटा हार्ट, दोनों ही महिलाएं हैं।



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1967 के बोस्टन मैराथन में हिस्सा लेने पहुंची कैथरीन स्विट्जर को पुरुषों ने धक्के मारकर ट्रैक से हटा दिया था। कैथरीन किसी भी मैराथन में दौड़ने वाली पहली महिला भी थीं।


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