दीपिका पादुकोण ने कहा- मैं लड़की हूं, इस आधार पर कभी फैसला नहीं किया

मुंबई.बॉलीवुड अभिनेत्रीदीपिका पादुकोणका मानना है किमेरे माता-पिता ने मुझे लड़की होने के नाते कभी कुछ करने से नहीं रोका। नही मैंने कोई फैसला इस आधार पर किया कि मैं लड़की हूं। परिवार ने मुझे सिखाया है किकॅरिअर को सबसे ऊपर रखना मतलबी होना नहीं है, यह सबसे बड़ी जरूरत है। बस अपने पैर हमेशा जमीन पर रखो।महिला दिवस परदैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की।
दीपिका ने बताया, 'मुझे और मेरी बहन को अपनी आशाओं और अभिलाषाओं का आकाश कभी छोटा नहीं करना पड़ा। मेरे परिवार में मेरे पिता ही एकमात्र पुरुष हैं, लेकिन हम सभी की इच्छाओंका परिवार में पूरा सम्मान है। जब आप पर बंदिशें नहीं होतीं, जब आप पर परिवार की अपेक्षाओं का बोझ नहीं होता तब आप सशक्त बनते हैं और अपनी पसंद का जीवन जीते हैं। आपकी पसंद आपके फिंगर प्रिंट की तरह होती है, जो आपको दुनिया में अलग पहचान देती है।
'महिलाएं खुद के लिए सोच रही हैं'
- दीपिका ने कहा, 'भारत संस्कारवान देश है और हमारी उत्कृष्ट परंपराओं का पालन न सिर्फ भारत की महिलाओं को बल्कि भारत के हर नागरिक को सहर्ष करना चाहिए। हालांकि,कहीं-कहीं जब महिलाएं स्वयं के लिए कुछ करती हैं तो उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है, जैसे उनसे कोई अपराध हो गया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि महिलाएं खुद के लिए सोच रही हैं। बदलाव आ रहा है। जीवन में कई बार बोल्ड डिसीजन करने होते हैं, जिसके लिए हर महिला को तैयार रहना चाहिए।'
- 'हम जानते हैं कि कई साल पहले फिल्म इंडस्ट्री में आना महिलाओं के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। माता-पिता बेटियों को इंडस्ट्री में जाने से रोकते थे। पर ये मान्यताएं बहुत तेजी से बदली हैं। यही कारण है कि नए-नए डायरेक्टर्स, प्रोड्यूसर, राइटर्स, तकनीशियन और एक्टर के रूप में महिलाएं बड़ी संख्या में आ रही हैं और सफल भी हो रही हैं।'
शादी काम में बाधा नहीं होनी चाहिए
दीपिका ने कहा,कहते हैं कि शादी के बाद प्रोफेशनल और फैमिली लाइफ में संतुलन बनाने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन इस विचार से मैं इत्तेफाक नहीं रखती। मेरे हिसाब से इसका शादी से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। मैंने 17 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। शादी से पहले मैं जिस तरह काम करती थी, वैसा ही शादी के बाद भी कर रही हूं। मेरे हिसाब से समानता हर हाल में समानता होनी चाहिए। फिर चाहे परिवार हो या काम। समानता को गुणों के नजरिए से देखने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए गुण और काबिलियत के आधार पर वेतन तय होना चाहिए, लिंग के आधार पर नहीं। औरतें मल्टीटास्किंग में बहुत अच्छी होती हैं। हर दिन महिलाएं बहुत सारे ऐसे काम कर रही हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत होती है। नहीं तो मल्टीटास्किंग संभव ही नहीं हो पाएगा। ये तो फैक्ट है कि महिलाएं पलभर में गियर बदल पाती हैं और एक काम से दूसरे काम में लग जाती हैं। दूसरी एक बड़ी अच्छी बात लगती है कि महिलाओं के व्यक्तित्व में भावनाओं का स्तर हमेशा ऊंचा होता है। वे अधिक संवेदनशील होती हैं। इसीलिए वे अपनी भावनाओं को रोकती नहीं हैं। उनकी अभिव्यक्ति काबिले-तारीफ होती है। मैंने भी हमेशा अपने दिल की बात सुनी है और मुझे हमेशा इसके अच्छे नतीजे ही मिले हैं।
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