भारत की टॉप स्कोरर शेफाली को मां की सीख- फिफ्टी-हंड्रेड नहीं, बस वर्ल्ड कप जीतने की सोचना

रोहतक.रोहतक का सुनारोंवाला मोहल्ला इन दिनों चर्चा में है। वजह हैं क्रिकेटर शेफाली वर्मा, जिसके चौके-छक्के के चर्चे पूरे शहर में हैं। जब हम धनीपुरा इलाके में पहुंचे और संजीव वर्मा के घर का पता पूछा तो लोग बता नहीं पाए, लेकिन उनकी बेटी शेफाली का नाम लेते ही घर तक छोड़कर गए। 3 मार्च से संजीव वर्मा घर पर नहीं हैं, वे सेमीफाइनल और फाइनल देखने ऑस्ट्रेलिया गए हैं। शेफाली की मां प्रवीन बाला भी वहां जाना चाहती थीं, परउनके पास पासपोर्ट नहीं था। इस वजह से वे नहीं जा सकीं।

हम जब शेफाली के घर पहुंचे तो उनकी मां प्रवीन बाला जेठानियों से घिरी थीं। लगातार फोन पर बातचीतकर रही हैं। एक कटता था तो दूसरा आ जाता है। नजदीक वाले तो हैं ही, दूर-दूर तक की रिश्तेदारों से बधाइयों के फोन आ रहे हैं। इस बीच बेटी शेफाली से भी दिन में एक बार बात जरूर होती है। शेफाली पास हो या दूर, उन्हें उसके खाने की बहुत चिंता रहती है। फोन पर बात होते ही सबसे पहले वे यही पूछती हैं कि खाना खाया किनहीं। इसके बाद खेल से जुड़ी बातें होती हैं। प्रवीन बताती है कि घर आते ही शेफाली की पहली फरमाइश पनीर भुर्जी और पनीर पराठे होते हैं।
शेफाली पढ़ती कम थी, खेलती ज्यादा थी
प्रवीन कहती हैं कि हर एक मां अपनीबेटी को पढ़ने के लिए कहती है। मैं भी शेफाली को पढ़ने और खेलने के लिए बोलती थी, लेकिन वह पढ़ती कम और खेलती ज्यादा थी। कम पढ़ने के बाद भी वहपढ़ाई मैं भी अच्छी थी और खेल मैं तो चौके-छक्के मारती ही थी।

गली में खेलती तो पड़ोसी कहते थे, तो बड़ा बुरा लगता था
प्रवीन बताती हैं कि शेफाली जब गली में खेलती थी तो आस-पड़ोस के लोग बड़ी टोका-टाकी करते थे। कुछ तो कहते थे कि ये बच्चे तो गली मैंखेलेंगे, कुछ नहींकरने वाले। किसी को लगता नहींथा कि वह इतनाआगे जाएगी। अब उसके मैच देखकर आस-पड़ोस और रिश्तेदार सब चुप हैं, हर कोई बस तारीफ करता है।
फोन मुझे करती है, बातें पापा की करती है
अपनी जेठानी सुदेश को बताते हुए प्रवीन बोली कि शेफाली पापा की लाड़ली ज्यादा है। फोन तो मेरे पास करेगी, लेकिन बातें पापा की करती है। घर पर आकरभी अपने पापा के साथ ही मस्ती करती है। अपने पापा की नकल भी करती है, उनकी तरह आवाज निकालेगी। तभी पापा-बेटी की ज्यादा बनती है।
उम्र कम है इसलिए उसे समझाती रहती हूं
प्रवीन के मुताबिक,जब भी शेफाली से बात होती हैतो हमेशा उसे समझाती हूं। उसकी उम्र कम है, इसलिए प्यार से समझाना पड़ता है कि बेटा किसी की बात किसी के आगे नहीं करनी। सिर्फ गेम खेलना है और गेम पर ही ध्यान देना है। फिफ्टी या हंड्रेडपर नहीं जाना, टीम के बारे में सोचनाऔर वर्ल्ड कप लेकर आना। वर्ल्ड कप जीतकर आओगीतो खुशी ही कुछ और होगी।
खुद बोली- मेरे बाल कटवा दो

प्रवीन बाला कहती हैं कि हमने कभी अपने बेटे और बेटी में फर्क नहींसमझा। शेफाली के पापा ने उसे भी एकेडमी भेजना शुरू किया तो मैंने बराबर सपोर्टकिया। लड़की होने की वजह से एकेडमी में उसे खिलाते नहीं थे। उसने तंग होकर घर आकै कहा कि पापा मेरे बाल कटवा दो। हमने मना नहींकिया, तुरंत उसके पापा ने बाल कटवा दिए। फिर कोई पहचान नहीं पाता था कि लड़का है या लड़की। आराम से क्रिकेट खेलती रही।
परिवार में आर्थिक संकट आया तो सबएकजुट हो गए

शेफाली की मां प्रवीन कहती है कि एक वक्त बहुत बुरा आया था। एक व्यक्तिशेफाली के पापा संजीव की नौकरी लगवाने के नाम पर घर के सारे पैसे लेकर चला गया। पूरा परिवार परेशान रहता था। जैसे-तैसे संभले। उसके पापा ने ब्याज पर पैसा उठाकै घर का खर्च चलाया। शेफाली फटे ग्लव्ज पहनकरग्राउंड जाती थी। कोई देख नहींसके, इसलिए सीधे किट बैग में हाथ डालकर ग्लव्जपहन लेती थी। ऐसा में बच्चों को एक ही बात कहती थी कि बेटा आज ऐसा टाइम है तो अच्छे दिन भी आएंगे।
ताई बोली- पड़ोसियों के घर गेंद जाती तो शिकायतकरने आते थे

शेफाली के नटखटपन की कहानी सुनाते हुए उसकी ताई सुदेश कहती हैं- वो तो सारा दिन क्रिकेट खेलती थी। कभीघर की छत परतो कभी गली में। इतनी जोर से गेंद को मारती थी कि पड़ोसियों के घर गिरती थी। आए दिन पड़ोसी उलाहना लेकर घर आते। उन्हें भी समझाकरवापिस भेजना पड़ता था।
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